Wednesday 31 August 2011

एक पहिया


आज अपनी गलतियों से
शर्मिंदा हूँ
गलत नही हूँ
सही होने से शर्मिदा हूँ
यादों को भूलाने में
दर्द बहुत होता है
ज़ख्मों में मरहम
लगाने में जैसा होता है
दिल भारी है
मन भारी है
यादों के किसी को
मिटाने की जबसे
मन ही मन तैयारी है
मरे हुये बच्चे को कब तक?
सीने से लगाये हुये
रहेगी बंदरिया ?
सबको पता है
गाडी तभी तक चलती है
जब तक कार्य करता है
गाडी का सभी पहिया
तभी मुसाफिर अपने
मंज़िल तक पहुँच पाता है
एक पहिया लाख कोशिश करे
अकेले कुछ नही कर पाता है

Tuesday 30 August 2011

पहचान ?


जीवन के सफर में
एक हमराह मिल गया
दिल था पगला अनायास
खिल गया
पर-------समय का चक्र ?
एक ऐसा वक्त लेकर आया
खिलते हुये दिल को
बेदर्दी से बिलखाया
जिसे हमदर्द समझा था
वो छलिया निकला
पक्षी को जाल में फँसानेवाला
बहेलिया निकला
दिल अपनी नादानी पर
जब पछताता है
मन उसे धीरे-धीरे
प्यार से समझाता है
जो बीत गया उसे भूल जा
कहना मेरा तूँ मान
ठोकर खाकर ही होती है
इंसान की पहचान।

Friday 26 August 2011

अस्तित्वहीन


कक्षा में अध्यापक पढा रहे थे
पौधों के क्या-क्या भाग हैं
समझा रहे थे
सबसे नीचे जमीन के अंदर
जड होता है
जो है पौधे का महत्वपूर्ण भाग
ये जमीन से खनिज-लवण लेकर
पौधों को जमीन में दबाये रखता है
उसके अस्तित्व को बचाये रखता है
भले ही आये बडी आँधी या तूफान
खुद उसकी नही है कोई पहचान ?
जड के ऊपर खडा रहता है
दंभी तना ?
जड से सब-कुछ लेकर
जो अभिमानी बना ?
पत्ते - फूल- फल सभी
देन है उस जड का
जिसका ऊपर से होता नही
कोई नामोंनिशान ?
ऐसा लगा ----- मैंने इसे
कहीं और भी देखा है-----
कहाँ ? कहाँ ? कहाँ ?
ध्यान आया ये तो
हर जगह है
हर घर-हर समाज
पूरे संसार मैं
जिससे बनती है
रिश्तों की फूलवारी
वो है सृजन में लिप्त
हर घर की अस्तित्वहीन नारी ?
कैसी विडंबना है जिससे होता सबका अस्तित्व
वो खुद है अस्तित्वहीन ।

Saturday 20 August 2011

मेरी शुभकामना


जीवन की चिलचिलाती धूप में
तुम्हारे सानिध्य की घनी छाँह ने
दिल को चैन औ दिमाग को
बार-बार नया आसमान दिया है
यादें धुमिल न हो ताउम्र
ऐसी छवि है मन में तेरी
तुम्हारे जन्मदिन पर
शुभकामना है मेरी
हर इच्छायें,हर सपने
सारी तमन्नायें
पूरी हो तेरी
तुम्हारे घर खुशियाँ अपरम्पार हो
दौलत की बौछार हो
पर------याद रखना
दौलत? काम? के नशे में
अपनों को भूल नही जाना
नही तो ? वक्त निकल जाने के बाद
पडेगा पछताना।

Sunday 14 August 2011

बाबूजी


बाबूजी-----, आपकी बरसी पर---
मेरी वेदना बहना चाहती है
अंतिम विदाई में जो नही कह सकी
आज वो कहना चाहती है।

दिल ने नही भुलाई अब तक
दिल्ली की वो विदाई---
गाडी छूटने की पीडा
आपके आँखों में उतर आई
इच्छा थी मेरी जीभर के गले मिलूँ औ
नैनों से नीर बहाऊँ
दिल के अव्यक्त व्याथा से,
माँ के खालीपन से,
आपके चिर बिछडन की पीडा से
मुक्ति पाकर वापस मंदसौर मैं आऊँ।

पर----आसुओं को लडी बनाकर
मेरी आँखें जब भी
 मेरी पीडा को दर्शाति थी
बदली बन उड जाती पीडा
आपकी अँखियों में लहराती थी
होश सँभाला जबसे मैने
ये बातें मुझे सताती थी
दःख न हो आपको
इसीलिये कई बातें नहीं बताती थी
हँसते -हँसते जी जाती थी
गम के आसुँ पी जाती थी ।

इसीलिये बिछडते वक्त आपसे
मैंने आसूँ नही बहाया
दिल मेरा जो कहना चाहा
उसे नही कह पाया।



समझ रहे थे दिल औ दृग
चिर विदाई की घडी आई
कालचक्र ने एकबार
अपनी लीला पुनः रचाई
छलक नही सकी थी
जो आखें आज अब छलकाती हूँ
सबको जाना है दुनिया से
इस बात से दिल को बहलाती हूँ।

दिल से अपनाया
आपके दिये संस्कार
तहेदिल से किया हे
आपकी हर आँग्या को शिरोधार्य
सच्चे दिल से निबटाये
मैने सारे कार्य
पहले माँ,फिर आपके जाते हीं
दुनियाँ हो गई छोटी
स्वीकार नही कर पा रही
ये बात आपकी बेटी।



माँ के साथ खुश होंगे वहाँ
ये सोच के खुश हो लेती हूँ
पीडा के घनिभूत होने पर
संग बिताये लम्हों को
एकबार पुनः जी लेती हूँ
दुखी होंगे मेरे दुःख से
सोचके ये गम हर लेती हूँ।


दूर होकर भी दूर नही हैं
ये बात मैं जानती हूँ
परछाई बनकर साथ रहते मेरे
ऐसा ही मैं मानती हूँ
जब-जब मैने खुद को
किसी उलझन मैं घिरा पाया
तब-तब आपने सपनों में आकर
मेरी उलझन को सुलझाया ।



बाबूजी----आपकी बरसी पर
श्रद्धासुमन अर्पित करती हूँ
बनूँगी हर जन्म में बिटिया
आपदोनों की,भरे दिल से
वादा करती हूँ
बेटी बनकर नही जीऊँगी
अब माँ बनकर जीना होगा
सारे उलझन ,सारे गम
खुद ही खुद में पीना होगा
इंतजार करुँगी उस पल का बेसब्री से
जब अगला हमारा मिलन होगा


खुसी से छलकती आँखें होंगी
उमंग से लहराता स्वर होगा
सात घोंडों के रथ पे होके सवार
रवि पश्चिम दिशा को जाता होगा
अगवानी करने के लिये
चाँद-तारों से सजी निशा को
बुलाता होगा।








Saturday 6 August 2011

हम दोस्त बनें


दोस्ती का रिश्ता बहुत ही
प्यारा और बडा होता है
स्नेह और विश्वास की नींव पर
खडा होता है।

दिल से दिल का जुडना
मन से मन का मिलना
एक अनोखा किस्सा होता है
दोस्त जिन्दगी का एक
अविभाजित हिस्सा होता है।

न हँसी न मजाक से
न ही कीमती उपहार से
दोस्ती में निखार आता है
सिर्फ औ सिर्फ
आपस की तकरार से


कुछ दिनों का अनबन,अबोला
हमें हमारी दोस्ती की कीमत बतलाता है
एक दुसरे का हमारे जीवन में
होने का मतलब समझाता है
तभी हमारा मन दोस्ती की
धुन पर गुनगुनाता है
दोस्त वो हे जो एक दुसरे से
मिले बिना अधुरा होता है
मिले एक दूसरे से तभी जागी
अँखियों का सपना पूरा होता है
ऐ दोस्त---- मेरी अभिलाषा है
हम दोस्त बनें जैसे
कृष्ण औ सुदामा
बिना कहे हम समझ जायें
एक-दूसरे का सफरनामा।

ऐ दोस्त


जीवन के इस दुर्गम पथ पर
पता नही क्या सोच रही हो?
कैसे कटते दिन तेरे हैं?
कैसे कटती रातें ?
इच्छा होती अब मेरी
करुँ मैं कुछ-कुछ बातें
तेरे दिल की तुम ही जानो
मैं अपना हाल सुनाती हूँ
हर दिन हर पल खुद को मैं
तेरे ही ख्यालों में पाती हूँ।

जीवन के इस मेले में
सभी हैं मेरे साथ पर
ऐ दोस्त एक तेरे बिना
मेरा दिल है बहुत उदास
यादों की अनमोल पूँजी
हैमेरे साथ जब हम हुआ
करते थे एक दुसरे के पास।

कितनी भी परेशानी आये
तुम होना नही उदास
बस यही एक विनती है
औ यही है मेरी मनोकामना
करना है तुमको हर मुसीबत का सामना
राह भले दुर्गम हो
कभी हिम्मत न हारना
क्योंकि------- तुम------
ईशान की जमीं हो-
सतीश की सर्वस्व-
माता-पिता की डोर हो औ
निशा की हो तुम भोर-
तुम,तुम नही हो
तुम-बहुत कुछ हो।  

Wednesday 3 August 2011

तुम मेरे लिये क्या हो


मन पाखी वैसे ही भटकता
जैसे बिन पेंदी का लोटा
माँ के साथ अगर नहीं रहता  हो बेटा
बेटा माँ के लिये क्या होता है
ये कैसे करुँ इकरार
मेरे जीवन के,मेरे सपनों के
मेरे वर्तमान औ भविष्य के
केवल तुम्ही हो सुत्रधार
तुम हो मेरे श्रवण कुमार
तुम्ही मेरे मान हो
तुम्ही अभिमान हो
अंजनी के लिये जैसे हनुमान हैं
कौशल्या के लिये जैसे राम हैं
यशोदा के लिये जैसे कृष्ण-कन्हैया हैं
वैसे ही तुम अपनी मैया के लिये हो
तुम्हे कैसे बताऊँ कि
तुम मेरे लिये क्या हो ?
तुम्ही हो सूरज तुम्ही हो चंदा
मेरे जीवन को महकानेवाले
तुम्ही हो मेरे गेंदा
बचपन को तेरे सँवारा मैने
बनकर तेरी लाठी
मेरी आँखों के तारे
मुझसे कभी दूर नही होना
बनकर मेरे बुढापे की लाठी
संग हमेशा रहना
दीदी का मान बढाना
बनकर उसका गहना
दौपदी का कृष्ण बन
सदा संग उसके बहना
पापा का रखना मान
भूलकर भी कभी नही
करना उनका अपमान
मैं रहूँ या न रहूँ
परछाई बनकर तेरे संग चलूँगी
किसी भी मुसीबत में
तुम हिम्मत मत हारना
दिलेरी से करना उनका सामना
हमेशा याद रखना
कभी नही भूलना कि
माँ की जान उनकी संतान होती है
जो खुद के लिये नही
मगर उनके लिये ही जीती है
तेरे इस जन्मदिन पर
मेरी है शुभकामना
मेहनत कर दिन-रात तुम
नभ की बुलंदियों को छु लेना
एक अच्छा इंसान बनकर
मेरी पहचान बनकर
मेरे दूध का कर्ज चुकाना।

Tuesday 2 August 2011

मेरी ख्वाहिश


मेरे दिल में तुम्हारे लिये प्यार था
तुमने उसे व्यापार समझा
मैंने तुम्हारी प्रशंसा की
तुमने उपहास समझा
सोचा था-खुशियों को साझा करने से
अपनेपन का एहसास बढ जायेगा
गम साझा करेंगे तो ये आधा हो जायेगा
पर पता नहीं कैसे ? कब ?क्यों ?
तुमने मकडी के जाले बुन डाले
मेरे स्नेह,अपनापन और आत्मीयता के
सारे अर्थ बदल डाले
दिल के दुःखमय उदगारों को
भग्न ह्रदय से कैसे मैं कहूँ?
सहा नहीं जाता जो गम
उसे कैसे मैं सहूँ।


मेरे दुःख को तुमने नही
मैने ही बडा कर दिया
अपनेपन की चाहत ने
आज मुझे इस मोड पर
 खडा कर दिया
 जहाँ एक तरफ तुम हो
दूसरी तरफ है
अनजानी सी डगर
सधे कदमों से मैं उस
पथ पर कदम बढा रही हूँ मगर
मुझे पता है जिस दिन
तुन नैराश्य औ असुरक्षा के
 घेरे  से बाहर आओगे
अपने साथ मुझे खडा न पाओगे
उसी क्षण से मुझे पाने के लिये
बेताव हो जाओगे।

तुम्हारे पास होगा मेरे लिये केवल
अपनापन औ प्यार पर
तब तक इतनी देर हो चुकी होगी
कि टुट जायेगी मेरी उम्मीद की डोर
और मैं चली जाऊँगी उस ओर
जहाँ से मेरा लौटना नामुमकिन होगा
और तुम्हारा मेरे पास आना होगा असंभव।

हो सके तो उस दिन
अपने द्वारा बुने मकडी के जाले
को साफ कर देना
दिल की गहराईयों से मुझे
माफ कर देना
जाते-जाते एक बात बताते जाऊँ
ख्वाहिश है मेरी
कभी किसी मोड पर गर
मैं तुमसे टकराऊँ
तो तुम्हे हँसते खिलखिलाते ही पाऊँ।

तुमने मेरे लिये क्या सोचा
ये गम नही है
गम सिर्फ इस बात का है
कि मेरे कारण तुमने अव्यक्त
दु;ख सहे
समझ गई मैं सारी बातें
बिना तुम्हारे कहे
वादा करती हूँ तुमसे
अब वो बात नही दुहराऊँगी
खुश रहो तुम हमेशा
इसीलिये तुम्हारी दुनिया से
दूर चली जाऊँगी ।

तुम्हारे साथ बिताया हर पल
मेरे लिये बहुत अच्छा था
पर विश्वास करो
बनावटी नही था कही भी
हरेक व्यवहार मेरा सच्चा था ।

ज़िदगी के झंझावातों से
अपनों के दिये आघातों से
होंठों की हँसी और चंचलता
कुछ देर के लिये खो सकती है पर
किसी की मूलप्रकृति नही सो सकती
अपना स्वभाव बदलकर मैं जी नही सकती
चुपचाप रहकर गम के आँसू पी नही सकती ।

कभी अच्छा कभी बुरा
ये समय का फेरा है
जैसी जिसकी सोच होती
वैसा उसका घेरा है ।

सब को वही-वही करना है
जो प्रकृति करवाती आई है
सुख-दःख,सही-गलत
सभी कर्मों का करती वो भरपाई है
आज रात है अगर तो
कल सबेरा भी होगा
डगर भले अंजान हो पर
कोई न कोई सहारा होगा
समझौता नही कर सकती मैं
मेरा चरित्र मेरे साँसों की कुंजी है
मोल नही है जिसका
वो अनमोल पुंजी है ।

गर मिल जाओ उस राह पे कभी तो
मुझे देखकर आह न भरना
अपनापन औ स्नेह देने की
मुझको कोई चाह न करना
जानती हूँ तुम्हे ज़िद मुझे
मनाने की होगी
पर समय फिर कुचक्र रचेगा
और मुझे जाने की जल्दी होगी ।