Wednesday 3 August 2011

तुम मेरे लिये क्या हो


मन पाखी वैसे ही भटकता
जैसे बिन पेंदी का लोटा
माँ के साथ अगर नहीं रहता  हो बेटा
बेटा माँ के लिये क्या होता है
ये कैसे करुँ इकरार
मेरे जीवन के,मेरे सपनों के
मेरे वर्तमान औ भविष्य के
केवल तुम्ही हो सुत्रधार
तुम हो मेरे श्रवण कुमार
तुम्ही मेरे मान हो
तुम्ही अभिमान हो
अंजनी के लिये जैसे हनुमान हैं
कौशल्या के लिये जैसे राम हैं
यशोदा के लिये जैसे कृष्ण-कन्हैया हैं
वैसे ही तुम अपनी मैया के लिये हो
तुम्हे कैसे बताऊँ कि
तुम मेरे लिये क्या हो ?
तुम्ही हो सूरज तुम्ही हो चंदा
मेरे जीवन को महकानेवाले
तुम्ही हो मेरे गेंदा
बचपन को तेरे सँवारा मैने
बनकर तेरी लाठी
मेरी आँखों के तारे
मुझसे कभी दूर नही होना
बनकर मेरे बुढापे की लाठी
संग हमेशा रहना
दीदी का मान बढाना
बनकर उसका गहना
दौपदी का कृष्ण बन
सदा संग उसके बहना
पापा का रखना मान
भूलकर भी कभी नही
करना उनका अपमान
मैं रहूँ या न रहूँ
परछाई बनकर तेरे संग चलूँगी
किसी भी मुसीबत में
तुम हिम्मत मत हारना
दिलेरी से करना उनका सामना
हमेशा याद रखना
कभी नही भूलना कि
माँ की जान उनकी संतान होती है
जो खुद के लिये नही
मगर उनके लिये ही जीती है
तेरे इस जन्मदिन पर
मेरी है शुभकामना
मेहनत कर दिन-रात तुम
नभ की बुलंदियों को छु लेना
एक अच्छा इंसान बनकर
मेरी पहचान बनकर
मेरे दूध का कर्ज चुकाना।

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