Sunday 23 October 2011

दीये की बाती

अमावस  की निशा के तम को हरने 
उसके अनकहे जख्म को भरने 
दीवाली दीपों  की जोत को संग लेकर आई है 
वैरी बन बैठा पवन पुरवाई है ......
पर दीये की जोत भी भला कभी 
इन बाधाओं से घबराई है ?
करें हम इस मूलमंत्र को आत्मसात 
होगी सर्वदा हमारे जीवन में 
खुशियो की बरसात ........
ईर्ष्या , द्वेष ,अहंकार ,औ 
बदले की भावना की आहुति देकर 
हम नेह के दीप जलाएं 
छोटे से इस जीवन में 
आनंद का उजास फैलाएं 
वैर-भाव को भूलकर 
एक उन्मुक्त  आकाश बनाएं 
जितना संभव होता हमसे 
उतना ही हम पर फैलाएं .........
दिल के अंतस में बोयें बीज
उमंग औ उल्लास का 
स्नेह औ सहयोग का 
श्रद्धा औ विश्वास का 
अनुकूलन औ समायोजन का 
उगेंगे जिससे हमेशा 
पौध सदा नवीन 
खिलखिलाएगी दिल के साथ 
मन की भी जमीन ........
 शुतुरमुर्ग बन
रेत में गर्दन छिपाने से 
काम नही चलेगा .......
निर्दोष निष्प्पाप दिल को 
ठेस पहुचाने का कर्ज  चुकाना होगा 
बनकर दिये की बाती 
बन्धु तुमको आना होगा ......
गर बन्धु हो तो ?
आना ही होगा .....
कभी नही भूलें हम 
श्रदा है तो संयम भी मिलेगा 
दिल से पूजा है तो 
दर्शन अवश्य ही  होगा 
भक्ति मन में प्रबल हो तो ?
आश्रय अवश्य मिलेगा .......
दीवाली में हर दिल का 
दीया अवश्य जलेगा ...... अवश्य जलेगा .......



Thursday 20 October 2011

मुर्गा बोला

मुर्गा बोला ....
कुकड़ू कु 
हुआ सबेरा जागो तुम 
दुनियां  जागी 
मुनियाँ जागी 
जाग रहा है 
घर सारा 
मुर्गी रानी 
मान भी जाओ 
तुम बिन मेरा 
कौन सहारा ?




मुर्गी बोली ........

खुद को दयनीय  बताकर 
दिल मेरा हर लेते हो ?
चाँद सितारे मेरे दामन में भरोगे .......
कहकर मुझे सब्जबाग दिखलाते हो ..........
छल करने की ये अनोखी अदा 
किस छलिये से सीखी है ?
देखी होंगी बहुत सारी पर ........
मुझ सी नही देखी होगी 
नही चाहिये चाँद सितारे 
नही महल न हरकारा 
मुर्गे राजा मुझको चाहिए 
केवल औ केवल साथ तुम्हारा .

Tuesday 18 October 2011

एक मुलाकात


सुबह का समय था
दिवाकर सात घोडों के रथ पे
होके सवार
अपनी प्रिया से मिलकर
आ रहा था
पवन हौले-हौले पेड की डालियों औ
पत्तों को प्यार से सहला रहा था
समाँ मनभावन था अचानक-
मेरी आँखें उसकी आँखों से मिली
उसने मुझको देखा
मैनें उसको देखा
मैं आगे बढी
उसने पीछे से  मारा झपट्टा
औ पकड लिया मेरा दुपट्टा
मैं पीछे मुडी उसे डाँटा
वो भागा पर-------
पुनः आगे आकर
मेरे रास्ते को रोका
औ मेरी आँखों में झाँका
उसकी आँखों में झाँकते हुये
महसुस हुआ
उसका प्यार बडा ही सच्चा था क्योंकि वो---------
आदमी नहीं बंदर का बच्चा था।

Thursday 6 October 2011

प्रतिच्छाया

झूठ मैं कह नहीं सकती
सच्चाई तुम सुन नही सकते
विश्वास से भरे सतरंगी सपने
बुन नही सकते।
गलती है तुम्हारी या फिर ?
दिल तुम्हारा किसी अपनों ने ही
भरमाया है
आश औ विश्वास से बुने
संबंधों को
बार-बार चटकाया है ?
शायद यही वजह है कि
तुम्हें किसी का एतबार नहीं
तुम्हारे अपनों ने शायद
तुम्हे बहुत सताया है
दुःख है कि तुमने
ये कभी नहीं बताया है।
पता चल गया है मुझे कि
तुम्हारी  सोच के पीछे
तुम्हारे अतीत का ही हमसाया है
तूँ उन्हीं परिस्थतियों की उपज मात्र
नकारात्मक  प्रतिच्छाया  है।