Saturday 25 August 2012

तन्हा हूँ पर ......

भीड़ में अकेले रहने का हुनर
पेड़ हमें सिखाता है ...
प्रकृति  का पहरेदार
अटूट विश्वास का पाठ  पढाता है
नि:शब्द हमें वह कहता है .....
तन्हा हूँ पर ......
आओ बन्धु
दूंगा मदद की छांह
मुझमें समाया हुआ है
प्यारा सा इक गाँव
कल क्या होगा ??????
पता नहीं ...
जाता हूँ मै कहीं नहीं
रफ्ता -रफ्ता जिन्दगी का
साथ निभाए जाता हूँ ...
अपनी तन्हाई के संग
झूम -झूम के गाता हूँ ...
तुम भी आओ
तुम भी गाओ
तन्हाई से प्यार करो ...
मिल रहा है जो जीवन में
ख़ुशी -ख़ुशी स्वीकार करो ....