Saturday 31 March 2012

विरह -गीत

दिल को लगी ठेस 
आँखें सह नही पाई 
सामने आये तुम जब ????/
कुछ कह नही पाई.......



आघात दर आघात मैं 
सहती चली गई 
कह न सकी जो बोलकर 
इक चुप्पी कह गई .......


उर के उजड़े उपवन में 
कोयल गाती नहीं है ..
याद तुम्हारी चाह के भी 
जाती नहीं है ........

इन्द्रधनुषी झूले हैं औ 
झिलमिल सी डोरी 
कैसे मिलूं प्रियतम से ..ये...
सोच रही गोरी .....

विरह भरे दिन बीत गये 
बीत गई कितनी ही रातें 
भींगा नही है तन मन अब तक .....
बीत गईं कितनी बरसातें .....
 
.
 

Thursday 29 March 2012

बातें खुद से

 

आगाज भी होगा

अंजाम भी होगा

नाम उसी का गूंजेगा

गुमनाम जो होगा .......



अस्तित्व बचाना
खुद का
सीमा मिट न पाए
करीब किसी के
इतना भी न होना कि?????/
वो दूर चला जाये ......


देते -देते सहारा किसी को ....
बेसहारा न हो जाना
फरियाद किसी कि सुनते -सुनते
फरियादी न बन जाना .....

दो नैनों में सपने पलते हैं
इसी को जीवन कहते हैं
कभी आंसू ..कभी मुस्कान ...तो ???/
कभी दर्द बनकर उभरते हैं ........

Saturday 24 March 2012

बहाना


 जाने कैसे ?
दिल की बातें
दिल में रह गई
कहना जिसे चाहा नहीं
जुबाँ से फिसल गई .........


रंजो  -गम को
मुस्कान के पीछे छुपाया था
वियोग के उजड़े चमन को
काँटों से सजाया था .......



मालूम था इक दिन
बहार संग
कलियों को आना है !१११
पतझड़ तो केवल
वसंत के आने का बहाना था ...........



Thursday 22 March 2012

भूली -बिसरी बातें

वक्त की कडाही में
 मैंने  पकाई
स्नेह ,अपनापन औ समर्पण
भरी मिठास से
रिश्तों की रसमलाई
तुम नही आई पर .......
याद तुम्हारी बार-बार आई


भूलने की तुम्हे मैंने
कोशिश की कई बार
भूल नहीं पाई मै तुमको
दिल के आगे गई मैं हार
याद न आओ मुझे
ये सोचकर मैंने
कर लिया  खुद को
तुझ में एकाकार
अब मैं हूँ और है मेरा
एकलौता संसार ..........

Friday 16 March 2012

कहा था उसने

ब्लोगर साथियों १५ दिसम्बर २०११ को मेरी दोस्त विनती गुप्ता का देहांत हो गया था केंसर की वजह से .वो बैंक  कर्मचारी थी और सबसे बड़ी बात ये थी कि अगर वो मंदसौर में रहती थी तो हर रविवार हमारी कोशिश रहती थी एक दुसरे से मिलने की.कभी नही मिल पाते थे तो फोन से ही बातें कर लेते थे हम .हमें एक दुसरे से मिलकर बड़ाअच्छा लगता था पर हमारा मिलन शायद भगवान को मंजूर नही था . अत: हमें चिरविदाई की पीड़ा दे दी .आज लगभग चार महीने हो गये मैंने भी खुद को कुछ संभाल लिया है .उसकी जुदाई को मैंने शब्दों के माध्यम से उकेरने की कोशिश की है पता नही कहाँ तक कामयाब हो पाई हूँ .आप भी बाटें मेरी इस पीड़ा को .धन्यवाद.



कहा था उसने एक दिन मुझे
हम बहुत दिनों से
पति -पत्नी की तरह नही रह रहे हैं
बल्कि एक दोस्त की तरह
एक -दुसरे का गम पी रहे हैं .........


दोनों ने दूसरी बार अपनी
दुनिया बसाई थी
हमसफर बनने के लिए
पुनर्विवाह की रस्में
फिर से   निभाई थी  .........



उनकी बगिया में
एक सुन्दर फूल
बहुत सारी  खुशियों के साथ खिले थे
जब दूसरी बार दो दिल
दिलो-जान से मिले थे .........


पर समय कहाँ किसी के
वश में रहता है ?
वो तो अपनी धुन में
अपने हिसाब से ही बहता है .......

पति-पत्नी का सुख  शायद
दोनों के हिस्से में नही था
दोस्त बनकर जियें
ये भी किस्मत को
मंजूर नही था ........


नैतिकता से विहीन
भौतिकता की इस अंधी दौर में
जबकि पति -पत्नी एक -दुसरे से
बेवफाई करते हैं
दोनों एक दुसरे का दोस्त बनकर
जीवन में सारी खुशियों की
भरपाई करते थे .........

सच ही तो है
पत्नी के बिना तो
घर सूना होता है पर........
दोस्त के बिना तो जग ही
सूना हो जाता है  .

आज जब पत्नी नामक उस दोस्त ने
चिर विदाई के लिए
अपनी आँखें बंद कर ली  तो ?
पति नामक दोस्त की अनजाने में ही
सारी खुशियाँ हर ली .....


पति ने पति के रूप में
सारी रस्में निबटाई पर
अंतिम विदाई की घडी जब आई .......
तब दोस्त नामक पति ने कर दिया इनकार 
दोस्त उनकी जिन्दगी से जा रही है
देख कर मच गया उनके दिल में हाहाकार
रोते हुए उन्होंने अपने दोस्त की ओर
कातर निगाहों से देखा
निगाहें जैसे कह रही हो  .........
दोस्त !क्यों दिया तुमने मुझे
इतना बड़ा धोखा ?
तुम्हारे बिना अब मै
कैसे जी पाउँगा ?
अपने गम अपने -आप ही
कैसे पी पाउँगा ?


 उनके इस मूक प्यार की साक्षी
भला !मै भी कहाँ अपने
आंसुओं के बांध को रोक पाई .....
सांत्वना के दो शब्द भी कहाँ ?
अपनी दोस्त के जीवन साथी से कह पाई ......
भरे दिल से अंतिम पथ के यात्री से
मैंने मन ही मन कहा
ऐ दोस्त !अपने अंतिम सफ़र पर
तुम ख़ुशी -ख़ुशी जाओ
याद  रखना
मै तुम्हे कभी नही भूल पाउंगी
जो वादा किया था तुमसे
वो अवश्य ही निबाहुंगी
बनकर मौसी ईशान की
तुम्हारा साथ मैं निबाहुंगी .........



Sunday 11 March 2012

पुनः


भूल कर सारे गिले शिकवे
तेरी गलती मेरी गलती
वादा का नया रस्म निभाना है
पुराने संबंधों को खत्म करें
अब संबंध नया बनाना है।
एक मोड पर क्यों खडे रहें
हरेक मोड से गुजर कर जाना है
किसी मोड पर मिले कभी थे
किसी मोड पर बिछड जाना हे
चेहरे पर दर्द को पढा नही
पढनेवाला अंधा था
सुनानेवाले का सुना नही
सुननेवाला बहरा था
अपनी-अपनी सबको पडी है
भौतिकता का ये गोरखधंधा है
संकीर्ण सीमाओं की मानसिकता से
हरेक प्राणी बँधा है
कितना भी शिकवा करं
ये दर्द न होगा कम
अनचाहे संबंधों को ढोने से
अच्छा है कि पुनः
अजनबी बन जायें हम।