ब्लोगर साथियों १५ दिसम्बर २०११ को मेरी दोस्त विनती गुप्ता का देहांत हो गया था केंसर की वजह से .वो बैंक कर्मचारी थी और सबसे बड़ी बात ये थी कि अगर वो मंदसौर में रहती थी तो हर रविवार हमारी कोशिश रहती थी एक दुसरे से मिलने की.कभी नही मिल पाते थे तो फोन से ही बातें कर लेते थे हम .हमें एक दुसरे से मिलकर बड़ाअच्छा लगता था पर हमारा मिलन शायद भगवान को मंजूर नही था . अत: हमें चिरविदाई की पीड़ा दे दी .आज लगभग चार महीने हो गये मैंने भी खुद को कुछ संभाल लिया है .उसकी जुदाई को मैंने शब्दों के माध्यम से उकेरने की कोशिश की है पता नही कहाँ तक कामयाब हो पाई हूँ .आप भी बाटें मेरी इस पीड़ा को .धन्यवाद.
कहा था उसने एक दिन मुझे
हम बहुत दिनों से
पति -पत्नी की तरह नही रह रहे हैं
बल्कि एक दोस्त की तरह
एक -दुसरे का गम पी रहे हैं .........
दोनों ने दूसरी बार अपनी
दुनिया बसाई थी
हमसफर बनने के लिए
पुनर्विवाह की रस्में
फिर से निभाई थी .........
उनकी बगिया में
एक सुन्दर फूल
बहुत सारी खुशियों के साथ खिले थे
जब दूसरी बार दो दिल
दिलो-जान से मिले थे .........
पर समय कहाँ किसी के
वश में रहता है ?
वो तो अपनी धुन में
अपने हिसाब से ही बहता है .......
पति-पत्नी का सुख शायद
दोनों के हिस्से में नही था
दोस्त बनकर जियें
ये भी किस्मत को
मंजूर नही था ........
नैतिकता से विहीन
भौतिकता की इस अंधी दौर में
जबकि पति -पत्नी एक -दुसरे से
बेवफाई करते हैं
दोनों एक दुसरे का दोस्त बनकर
जीवन में सारी खुशियों की
भरपाई करते थे .........
सच ही तो है
पत्नी के बिना तो
घर सूना होता है पर........
दोस्त के बिना तो जग ही
सूना हो जाता है .
आज जब पत्नी नामक उस दोस्त ने
चिर विदाई के लिए
अपनी आँखें बंद कर ली तो ?
पति नामक दोस्त की अनजाने में ही
सारी खुशियाँ हर ली .....
पति ने पति के रूप में
सारी रस्में निबटाई पर
अंतिम विदाई की घडी जब आई .......
तब दोस्त नामक पति ने कर दिया इनकार
दोस्त उनकी जिन्दगी से जा रही है
देख कर मच गया उनके दिल में हाहाकार
रोते हुए उन्होंने अपने दोस्त की ओर
कातर निगाहों से देखा
निगाहें जैसे कह रही हो .........
दोस्त !क्यों दिया तुमने मुझे
इतना बड़ा धोखा ?
तुम्हारे बिना अब मै
कैसे जी पाउँगा ?
अपने गम अपने -आप ही
कैसे पी पाउँगा ?
उनके इस मूक प्यार की साक्षी
भला !मै भी कहाँ अपने
आंसुओं के बांध को रोक पाई .....
सांत्वना के दो शब्द भी कहाँ ?
अपनी दोस्त के जीवन साथी से कह पाई ......
भरे दिल से अंतिम पथ के यात्री से
मैंने मन ही मन कहा
ऐ दोस्त !अपने अंतिम सफ़र पर
तुम ख़ुशी -ख़ुशी जाओ
याद रखना
मै तुम्हे कभी नही भूल पाउंगी
जो वादा किया था तुमसे
वो अवश्य ही निबाहुंगी
बनकर मौसी ईशान की
तुम्हारा साथ मैं निबाहुंगी .........