Wednesday 11 September 2013

तुम्हीं दर्द हो दवा तुम्हीं हो

जीवन पथ पे चला अकेला 
छोड़ दुनिया का झूठा मेला 
सहम गए क्यों ?

वास्तविकताओं से सामना हुआ ज्योंहि 

आगे खड़ी है मंज़िल तेरी 
हिम्मत कर लो ओ बटोही,…

चहूँ ओर उदासी थी 
कलियाँ-कलियाँ प्यासी थी 
प्रकृति भी स्व-दुःख से कातर होकर 
बीज तम के बो रही थी …

तम से निखरी निशा उन्हें 
ओस की बूँदों से भिगो रही थी----

देखो ! दिनकर ने  आकर 
हौले से उन्हें सहलाया 
पलक झपकते उड़ गया दुःख 
कोई उन्हें देख न पाया 
जीवन के ये क्षणिक दुःख 
उड़ जायेंगे यूँ हीं ----

आगे खड़ी  है मंज़िल तेरी 
हिम्मत कर लो ओ बटोही …,… 

दुःख की बदली में तुम 
इंद्रधनुष बन चमको
स्याह रातों में तुम 
जुगनू से सबक ले लो 

बन चटख धूप तुम्हें 
आस-पास बिखरना होगा 

बरखा की बूँदें बन 
दूत नव-जीवन का बनना होगा 

तुम्हीं दर्द हो दवा तुम्हीं हो 
तुम्हीं समस्या, समाधान तुम्हीं हो 

राह की बाधाओं का सामना 
करना होगा तुम्हें खुद हीं 

आगे खड़ी है मंज़िल तेरी 
हिम्मत कर लो ओ बटोही …….