Friday 21 February 2014

बोलो बसंत

उजड़े को सँवारते हो 
नाउम्मीदी से भरे दिलों में 
उम्मीद की  किरण जगाते हो.… इसीलिए,,,
बसंत---   तुम..... ऋतुराज कहलाते हो..... 

यहाँ-वहाँ  सारे जहाँ में 
छोटे-बड़े का भेद किये बिना 
गुलशन को महकाते हो..... इसीलिए ,,,,
बसंत ---तुम.… ऋतुराज कहलाते हो.… 

माँ शारदे का प्रसाद 
होली का अल्हड आह्लाद 
झोली में लेकर आते हो..... इसीलिये,,,,
बसंत ---तुम.…ऋतुराज कहलाते हो.…

गाँव शहर हर गली की  बिटिया 
निर्भय जीवन जी पाये 
कोई भी दुष्कर्मी उसके 
अस्मत / भावनाओं से खेल न पाये 
फिज़ा में ये रंग कब-तक बिखराओगे 
उसी बसंत का इन्तजार है 
बोलो   बसंत ! कब आओगे ?